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दरवाज़े फिर से गदराई ऋतुगन्धा / रामचन्द्र ’चन्द्र भूषण’

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दरवाज़े फिर से
गदराई ऋतुगन्धा

चितवनिया
सुमिरन में बीत गई
छलकन में
गागरिया रीत गई
खाती हिचकोले
सरगम की सारन्धा ।

विजनवती
थालियाँ परोस रही
किरन-फूल
जूड़े में खोंस रही
पाकर वरमाल
झुका गेहूँ का कन्धा ।