भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द में लिपटा हुआ है मेरा ख़्वाब कोई / कबीर शुक्ला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द में लिपटा हुआ-सा है मेरा ख्वाब कोई।
जैसे लिपटा हुआ हो काँटो से गुलाब कोई।
 
दिल मेरा टूटा हुआ है काँच-सा हूबहू है,
दर्द देता है मुझे उस पर बेहिसाब कोई।
 
जिन्दगी प्यास बनी है रेत-सी सागर सी,
दर्द के स्याह में लिपटी किताब कोई।
 
उम्मीदे-दिल है जख्मो को मरहम देगा,
कोई इन्साँ रहमदिल याफताब कोई।

अपने सवालों के पुरिन्द में जल रहा हूँ,
कहीं नहीं मेरे सवालों का जवाब कोई।