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दर्पण / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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मेरे दर्द न देख सका दर्पण
तू कैसे सच्चा मीत मेरा...?
तर्पण आँसू का दिखा तुझे
न दिखा बिखरता गीत मेरा?

हर शब्द-शब्द नित गौण हुए
निज आत्मश्लोक विस्तार नहीं
हर मुक्तक में स्वर रूँध रहे
उत्कंठ भाव उद्गार नहीं...

मन छंदों के बिलखे लेकिन
सिसकी में पले संगीत मेरा
तर्पण आँसू का दिखा तुझे
न दिखा बिखरता गीत मेरा...?

अब स्वर श्रृंगार नहीं करते
कुहुक कंठ कहके भी नहीं
स्व-आलिंगन शव घुटन भरी
अर्थी चढ़ मन चहके भी नहीं

मुख में अग्नि लहक दिखे
तब समझे, झुलसे मीत तेरा...!
तर्पण आँसू का दिखा तुझे
न दिखा बिखरता गीत मेरा...?