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दशमोॅ सर्ग / कैकसी / कनक लाल चौधरी 'कणीक'

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दशमोॅ सर्ग

कुल हि काल यमुपरी रुकी फिन रावण करै विचार
धरती के सभटा राजां तेॅ मनी लेलकै हार

आबेॅ कोय राजा में दम नैं जेॅ हमरा ललकारेॅ
हमरोॅ रास्ता रोकी केॅ जे युद्ध में उतरेॅ पारेॅ

इ सोची सेनापति सें वे पूछै सेना हाल
की सेना में दम छै एत्तेॅ युद्ध करै पाताल

सेनापति प्रहस्त फिन बोलै सैन्य हौसला बढ़लै
सभ टा रण में विजय पाबि सेना के मनोबल चढ़लै

सेनापति के बात सुनी फिन रावण हर्षित भेलै
यमपुर छोड़ी कूच करै लेॅ सेना साथें बढ़लै

मार्ग में बिन्ध्याचल नगीच नर्मदा नदी तट आबै
जग्घोॅ देखि मनोरम वै ठां सेना केॅ ठहराबै

कलकल-छलछल धार देखि मन रावण के ललचाबै
अपने साथ सभ्भै सेना केॅ नद्दी में नहलाबै

नद्दी में गोता लगतें ही बाढ़ उफनलोॅ अैलै
बाढ़ निरन्तर बढ़तें-बढ़तें नदी भयंकर भेलै

कैक टा सेना भाँसी गेलै बाँकी सभ उपरैलै
रावण केॅ है बाढ़ के कारण कुछू समझ नैं अैलै

कारण जानै खातिर रावण उद्गम स्थल जाबै
जहाँ अन्य सैनिक सें भरलोॅ जग्घोॅ एक देखाबै

दूर सें दशमुख प्राणी देखी सैन्य झपट्टा मारी
रावण केॅ वै सब सैनिक ने आबी लेलकै घेरी

बोलै नायक, दशमुख प्राणी पद आगू न बढ़ाबोॅ
राजा जलक्रीड़ा में रत छै तुरत धुरी तों जाबोॅ

महिष्मती के राजा अर्जुन जल-विहार में खेलै
जें भी विघ्न खेल में डालै हौ मृत्यु मुख गेलै

रावण बोलै अरे मूढ़, तोहें हमरा नैं जानें
मृत्युदेव जमराज विजेता केॅ नैं तोंहें पहिचानें?

अभि तुरत जमलोक के रस्ता तोरा सभ केॅ देखाबौं
फिन आगू के रस्ता तोरे लाश लांघि केॅ जाबौं

है कहि रावण सैन्य बलोॅ केॅ मारी आगू बढ़लै
विन्ध्य के निर्झर जलप्रपात संगम पर जाय पहुँचलै

जलक्रीड़ा में रत हंसोॅ, सारस के जोड़ी लेखी
धार सुन्दरी संग एक अतिकाय प्राणि केॅ देखी

रावण विश्मय में पड़ि, वै अतिकाय के खेल निहारे
जें जलधारा कॅे रोकी करवट लै बाढ़ उतारै

रावण के ललकार संे बाधा जल विहार में पड़लै
काम त्यागि फिन क्रोध में आबी अर्जुन युद्ध में अड़लै

महिष्मती के राजभवन सें, युद्ध के करै तैयारी
सेनापति फिन धाबै रण में, लैकेॅ सेना भारी

दोन्हूं राजा के सेना फिन युद्ध करै में लागै
महिष्मती के धरती तुरंते रण उन्माद सें जागै

युद्ध वेष में उतरी आबै हैहयराज सहस्त्रार्जुन
एक हजार हाथ वाला कृतवीर्य के बेटा अर्जुन

जैन्हैं हौ सहस्त्रबाहू रणक्षेत्र में उतरी आबै
सेनापति प्रहस्त्र तुरनते अर्जुन सम्मुख धाबै

अर्जुन के प्रहार पर मुर्छित होय जमीन पर गिरलै
सेनापति मुर्छित देखी फिन रावण सम्मुख अैलै

दोन्हूं में घनघोर युद्ध बहुकाल निरन्तर जारी
कभी एक भारी केकेर्ही पर कभी दोसरोॅ भारी

अर्जुन के एहसास भेलै, रावण के अजर अमरता
आपनोॅ सोचोॅ में लानै वें बेशी आरो प्रखरता

घातक एक प्रहारोॅ सें जबेॅ रावण मूर्छित भेलै
तखनी वै मूर्छावस्था में अर्जुन चंगुल फँसलै

रावण केरोॅ बीस हाथ बाहू सहस्त्र में पड़लै
बीसो हाथोॅ के जकड़ी रावण छाती पर चढ़लै

फिन रसरी से बान्ही-छीन्हीं रावण केॅ घिसियावै
नोंचि, खसोटि अस्त्र सें दकची रावण रुधिर बहाबै

रावण के सेना सभ भागी जंगल जाय नुकैलै
सहस्त्रबाहू सेनां रावण केॅ घिसियैतें लै बढ़लै

घाव से भरलोॅ अंग जबेॅ धरती घसीटलोॅ जाबै
लहू-लुहान रावण तखनीं अति घोर कष्ट केॅ पाबै

जोजन अर्ध यही क्रम रहलै फिन महिष्मती आबै
एक विशाल खम्भ में बंधि हौ प्यास-प्यास चिल्लाबै

दरद के मारे कानै रावण दर्शकें देखि कुढ़ाबै
कोय थूकै कोय दशमुख देखै कोय ठिटू ठो दिखाबै

रावण के दुर्गति करी फिन अर्जुन मनें बिचारै
इ अमर्त्य प्राणीं कखनूं प्रतिघात करै लेॅ पारै

लाज आरो ग्लानि सें रावणेॅ आँख मुन्दनें छेलै
वही समय दादा पुलस्त्य ऋषि अर्जुन सम्मुख अैलै

करी दण्डवत अर्जुन तखनी अभिवादन में लागै
बोलै भगवन दर्शन पावी हमरोॅ भाग्य ठो जागै

चाहौं किछु करै के सेवा जे आदेश भी पावौं
हमरा बस जत्तोॅ टा होबै तुरत लानी हम आबौं

ऋषि जी बोले अर्जुन तोहैं आपनोॅ सुयश बढ़ाबोॅ
बन्दी रावण पौत्र जे हमरोॅ मुक्त करी केॅ लाबोॅ

दोनों मित्र बनी जा इखनी तोरे बड़प्पन होथौं
वै जिद्दी अभिमानिं तोरा सें बदला कभी न लैथौं

जे आज्ञां प्रभु इ कहि अर्जुन रावण मुक्त कराबै
रावण केॅ दादा पुलस्त्य के सम्मुख लैकेॅ आबै

ऋषि के आगू दोनों मिली दोस्ती के हाथ मिलाबै
फिन रावण अभियान में अपनोॅ सेना के संग जाबै

धरती के सभ्भे टा राजा रावण शरण में अैलै
तब्बेॅ हौ पाताल विजय के रुख करि बढ़लोॅ गेलै

वहाँ खालि एक वरुण हरावै मनसा में हौ गेलै
मगर बीच पाताल के रस्तां एकटा योद्धा अड़लै

दैत्यराज निषतकवच रहै ब्रह्मा के वरदानी
ओकरा सें लड़ि रावण सेनां होलै पानी-पानी

सात दिवस तक युद्ध ठहरलै कोय नै मानै हार
तबेॅ ब्रह्माजी फिन उतरै हौ देखी केॅ तकरार

फेरु नया वर के दै हवाला ब्रह्मां बीचें पड़लै
देखी हार दैत्यराजोॅ के रावण आगू बढ़लै

आधोॅ टा पाताल के राजा सगा संबंधी छेलै
जे रावण परिवार से जुड़लोॅ सीधे सीधी भेलै

कंुभकरण के कोय ससूरतेॅ खरदूषण के सारोॅ
त्रिसिरा के साढू बनि भेलै पूरापूरी बारोॅ

बाँकी एक हीस में छेलै नाग वंश परिवार
शेषनाग के समधी बनथैं रण के नै दरकार

बचलोॅ हिस्सा में जेन्है निषादकवच रण छोडै़
रावण सेना साथ लेने फिन वरुण लोक दिश दौड़ै

वरुण लोक में पहुँची रावण रण हुंकार लगाबै
मगर दशानन हुँकारोॅ पर नै कोइयो भी आबै

तखनी वरुण ब्रह्मलोक छेलै ब्रह्मा के दरबारें
यै लेली अनजाने रहलै रावण के हुंकारे

वरुणोॅ के बेटा-पोता संग सेना नायक पुष्कर
सुरभि गाय साथे लै सेना दै लेॅ आबे टक्कर

रावण सेना के प्रहार सें वरुण सैन्य भू लैटै
भू गिरलोॅ पुष्कर के फेनूं बेहोशी ने लपेटै

वरुण सैन्य के सभे महारथीं जबेॅ बेहोसी पाबै
तेॅ रावण वरुणोॅ केॅ खोजै मूर्छित जेरां जाबै

जबे वरुण के पता नैं चललै तेॅ रावण खिसियाबै
अवसि वरुण युद्धोॅ के भय सें कायर होय नुकाबै

हर मान तों-हार मान तो इ कही-कहीं चिल्लाबै
मगर वरुण के महलोॅ सें कोइयो संकेत नै आबै

रावण फिन अपनोॅ जौतोॅ केॅ विजय ध्वजा फहराबै
सम्मुख सुरभि प्रणाम करी हौ लंका वापस जाबै

बारोॅ साल गुदस्त करी केॅ चढ़ि-चढ़ि पत्थर पानी
लंका धुरी केॅ जाबै रावण बनि दू लोक के स्वामी