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दसमोॅ सर्ग / अंगेश कर्ण / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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केकरौ पता नै लगलै कुछुवो
कखनी कृष्ण शिविर सें गेलै,
भारी खुशी सें बेमत सब टा
सब तेॅ गदगद हेने छेलै।

महाबली गिरलोॅ जे छेलै
अतिरथी प्राण गमाय केॅ रण में,
उपटै मोद निसांव खुली केॅ
यही बात लेॅ पाण्डव-जन में।

हुन्नें अतिरथी रोॅ शव लेनें
कृष्ण पहुँचलै अंग देश में,
खोजै कोय कुमारी भूमि
बदहवास रं, साधू भेष में।

मतर कहूँ नै कोनो कोना
श्मशानोॅ के हेनोॅ मिललै,
रहेॅ अखंडे अभियो तांय भी
हारी केॅ जेठौर पहुँचलै।

जे जेठौर महाकाली के
महाविहारोॅ के वन-पर्वत,
पुण्य जहाँ पर होनै बरसै
पूजा में ज्यों सब पर अक्षत।

धरथैं गोड़ लगै छै त्राटक
चारो ओर शांति के डेरा,
जै बीचोॅ में चारो दिश सें
मलय पवन नें मारै फेरा।

पर्वत रूप धरी केॅ जैठां
योगी शिव ही ध्यान लगैनें,
अंग जहाँ पर सचमुच ठाड़ोॅ
स्वर्गोॅ के सुख-सुषमा पैनें।

वहाँ पहुँचतै कृष्णो केरोॅ
व्याकुल मन-इस्थिर रं होलै,
कोॅन अखंडोॅ भूमि होतै
निरयासी केॅ आँख टटोलै।

मतर वहूँ पर कहौं नै छेलै
हेनोॅ मुट्ठी भर भी जग्घो,
कुछ चिन्ता, कुछ सोच-फिकिर में
क्षण भर लेॅ भै गेलै बक्खो।

”की करियै? की आरो उपायो?
मातृभूमि सें अलग हटी केॅ,
चिता सजैबोॅ कर्णोॅ केरोॅ-
छाती जैतोॅ रही फटी केॅ।“

”कुछ तेॅ करना छै, करने छै
अभिये, अभी तुरत बिन चुकलेॅ“
आरो फुर्ती सें तखनी ही
मृत देहोॅ केॅ लेलकै झुकलेॅ।

दोनो तरहत्थी ठो जुड़लै
भूमि कुमारोॅ पुण्य पवित्तर,
एक यही बचलोॅ जें छेलै
सब प्रश्नोॅ के सुन्दर उत्तर।

करुणा सें भिंजलोॅ आ सनलोॅ
मंत्र पढ़लकै कृष्णें जेहनैं,
धधकी उठलै आगिन लह-लह
तरहत्थी पर तभिये तेहनैं।

कर्णोॅ के जड़ देह अचल ठो
तपी, जली केॅ भष्म दिखाबै,
पवन भष्म केॅ उत्तर दिशा में
ऊपरे ऊपर उठी उड़ाबै।

आरो छोड़ी दै गंगा में
गंगा केरोॅ बीच लहर में,
विह्वल जनता अंग देश ठो
ओतनै सूर्यो भी ऊपर में

पर दोनों से कहीं अधिक ही
कृष्णोॅ के मन हहरै छेलै,
धरती परकोॅ सूर्य खोय केॅ
मन ही मन में कुहरै छेलै।

जखनी ऐलै शिविर घुमी केॅ
बिलखेॅ लगलै धर्मराज तक,
माय कुन्ती संे बात सुनी केॅ
जे छुपले ही रहै आज तक।

कृष्णोॅ दिश देखी-देखी केॅ
धर्मराज कपसी केॅ बोलै,
”बड़ोॅ भाय के वध होय गेलै
महापाप हमरा सें होलै।“

”हुनकोॅ सब व्यवहार बड़े ही
रहलै रण में, ई सब जानै,
बैरी बनी केॅ पाण्डव खाड़ोॅ
पकड़ै, पर केकरौ नै हानै।“

”वचन निभैतें गेलै सब दिन
दान-दया केॅ साथें राखी,
हुएॅ हुएॅ नै आरो कोय्यो
भगवन छौ तोहें तेॅ साखी।“

”जखनी देखियै हम्में हुनका
तभिये तेज घटी जाय हमरोॅ,
धर्मराज तेॅ हुनिये छेलै
नै खाली यम सब्भे यम रोॅ।“

”है युद्धोॅ के अर्थ व्यर्थ छै
बड़ोॅ भाय जों हमरोॅ लुग नै,
आय यही बस हमरा लागै
धर्म-दया के ई युग, युग नै।“

”भगवन, जहिया बात खुली कॅे
सबटा ऐतै कोय काल में,
बोंगोॅ बनी की सत्ये रहतै
दोख लिखैतै की नै भाल में।“

”सौ हेनोॅ युद्धोॅ पर जय सें
कहीं बढ़ी केॅ छेलै हुनी,
आबेॅ मोून करै बस हमरोॅ
जंगल जाय रमाबौं धूनी।“

”समझेॅ पारौ-कत्तेॅ हुनका
मन में उठतें होतै दुख ठो,
हारी गेलोॅ होतै पहिले
युद्ध लड़ैलेॅ ऐलै झुट्ठो।“

”कोय कुछ बोलौ कत्तो बोलै
बात यही सच छेकै लेकिन,
हमरे सब के कारण हुनकोॅ
बितलै दुर्योधन के संग दिन।“

”कुल-वंशोॅ के बात उठेलौं
आहत हुनकोॅ मन केॅ करलां,
युद्ध-बीज केॅ पानी देलियै
जेहनोॅ करलां होने भरलां।“

”इखनी कोय्यो कत्तो बोलौ
कर्णे केॅ सब देखौ दोषी,
की मैयो विपरीत कहतियै
खाड़ोॅ कैतियै पाली-पोसी।“

”माय के निठुर वचन जेठोॅ लेॅ
कोय नै जग में अच्छा कहतै,
इखनी जे भी जे कुछ बोलोॅ
आबै वाला दुनियौं कहतै।“

”पाप हुएॅ छोटोॅ आ बड़का
मुँह खोलै छै सुरसा नाँखी,
नीम्मर कपड़ा कै दिन चलतै
कत्तो राखोॅ ओकरा टाँकी।“

”ऐतै समय, चिढ़ैतौं सबकेॅ
मुँह के केना दिखैबौ तखनी,
कत्तेॅ तर्क कहाँ सें गढ़भौ
सौ सवाल करथौं जग जखनी।“

बात सुनी केॅ सबटा कृष्णें
धीरज देलकै धर्मराज केॅ,
बड़ी शांत-संयत बोली में
खोलतें जेना कोय राज केॅ।

”जे दुख तोरा अभी युधिष्ठिर
ऊ दुख हमरा पहिले सें छै,
भावी की रोकला सें रुकलै
केकरौ सें भी-अन्तर पूछै।“

”कोय नै जानै खेल नियति के
ओकरोॅ ऊपर केकरोॅ वश छै,
बात मनुख के छोड़ी राखोॅ
भगवानो तक बड़ी विवश छै।“

”लेकिन जेकरोॅ धर्म-दया ही
रहलै जीवन भर अगुऐतैं,
ऊ कर्णोॅ सें के ऊपर छै
पीछुवे रहतै, ऊ पद पैतें।

”दानी नै ओकरोॅ रं कोय्यो
कोय धरती पर हुवै नै पारेॅ,
धर्मनिष्ठ हौ, पुण्य आत्मा
मणि-समय जे सर पर धारेॅ।“

”रहतै कर्ण समय के सर पर
सूर्ये नाँखी, सूर्य पुत्र ऊ,
भले समैलै देह राख में
नै होतै यश धू-धू-धू-धू।“

”कर्णोॅ के गुण, पुण्य कर्म पर
कलियुग में सौ काव्य रचतै,
शील ओकरोॅ गाबी गाबी
युग कभियो नै कभी अघैतै।“

”धरती पर ऊ धर्म मित्र के
धर्मोॅ केरोॅ साथी छेलै,
ढाढ़स धरोॅ युधिष्ठिर तोहें
धर्म धर्म मकें जाय समैलै।“

”उठोॅ युधिष्ठिर बड़ोॅ भाय केॅ
कर्म अधूरा पूरा होय लेॅ,
जे अधर्म धरती पर छैलोॅ
ऊ सब बाँही बलोॅ सें धोय लेॅ।“

”हेनोॅ राज बसाना बाकी
कुल-वंशोॅ के दंभ भरै नै,
मानवता के माथा पर सें
सत्कर्मोंॅ के मुकुट गिरेॅ नै।“

”हर डेगोॅ पर जात-धरम के
कोय बजाबौ ढोल नै डंका,
भाय बंधु के बीच रहेॅ नै
दीन-हीन रोॅ कोनो शंका।“

”जे दिन हेनोॅ राज बसैबा
तोरोॅ कर्ण तोरै लुग होतौं,
जों हेनोॅ नै हुएॅ, कर्ण की
सौंसे ठो दुनियाँ ई रोतौं।“

”हेनोॅ कुछ आबेॅ करना छै
विद्या लेॅ नै कोय्यो तरसै,
जेठोॅ के सुखला लकड़ी पर
कोय्यो आगिन रं नै बरसै।“

”लोक-लाज के मलकाठोॅ पर
केकरो फँसेॅ नै प्राण कहँू पर,
धरती पर ओत्तेॅ सुख बरसेॅ
स्वर्गलोक में जत्तेॅ ऊपर।“

”कर्ण देह सें भले यहाँ नै
समझोॅ, मन सें तोरे लुग छौं,
जिद सें जे आनेॅ नै सकलै
लाना ऊ तोरै तेॅ युग छौं।“

”उठोॅ कर्ण के मुक्ति लेली
मुक्त करोॅ डरलोॅ धर्मो केॅ,
ऊपर आगे लै जाना छौं
मैत्री, दान, दया कर्मोंॅ केॅ।“

अतना कही कृष्ण चुप भेलै
घोर उदासी उपटी ऐलै,
जरो ठेलाबै नै चुप्पी छै
मिली-जुली सब कत्तो ठेलै।

सबके गेलै ध्यान सरंग दिश
जहाँ मध्य पर सूरज छेलै,
मतर जनाकि तारा टिम-टिम
सोचै सब्भैं ई की भेलै?

लेकिन तभिये बोल कहीं सें
उठलै आरो फैली गेलै,
धरती के कोना-कोना में
धार मेघ के बनी समैलै।

गूंजै छै कर्णोॅ के वाणी
नदी, पहाड़ो, मैदानोॅ में,
दशो दिशाओ के कानोॅ में
जन, मुनि, योगी के ध्यानोॅ में।

”वचन बड़ा अनमोल मणि रं
गलत गमैबोॅ पाप बड़ी छै,
फेनू तेॅ बस नाशे उपटै
धरलोॅ मृत्यु-हाथ छड़ी छै।“

”अहंकार बुद्धि पर पत्थर
सद्विवेक के पथ में कांटोॅ
फेनू सुख तेॅ जाय विलाबै
जीवन भर दुक्खोॅ के घाँटोॅ।“

”अगर धर्म नै, पुण्य कर्म नै
सब कुछ पावी केॅ की पाबै,
एत्तेॅ झूठ आ पाप कथी लेॅ
मौत तेॅ आनै छै ऊ आबै।“

”फलेॅ पुण्य धरती पर लह-लह
पाण्डव हेनोॅ धरम बनाबोॅ,
लोभ-हाही सें नीति मरै छै
पहिले एकरै जाय बचाबोॅ।“

”खाली दोष लगैला सें नै,
दुनियाँ उबरेॅ पारेॅ दुख सें,
ई पापोॅ सें उबरी आबोॅ
बाकी जिनगी काटोॅ सुख सें।“

”हम्में तोरे साथ छियौं बस
एतने समझोॅ एतने जानों,
दान, धर्म केॅ जै ठां देखोॅ
ओकरै में हमरा पहचानोॅ।“

वन में जों पंचम सुर गूंजै
जों पर्वत पर झरना झरझर,
जों मंदिर में शिव-शिव हर-हर
गूंजी उठलै कर्णोॅ के स्वर।