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दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज मेरी माँ के थे / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

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दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज<ref>खुशियाँ देने वाले कोमल हाथ</ref> मेरी माँ के थे
उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे

हरेक सिम्त<ref>दिशा</ref> समेट दी कि हो जाऊँ कामराँ<ref>सफल</ref>
वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे

अहल-ऐ-जहाँ<ref>दुनियावाले</ref>ओ ये पेंच-ओ-ख़म<ref>दाँव-पेंच</ref> का दम
मुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ<ref>जुलूस</ref> के थे

जब तक वो न थी करीब, तो सब थे रकीब
हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ<ref>डूबता सूरज</ref> के थे

आज तो दे रखीं हैं सौ दुकानें किराए पर
कल तक ख़रीदार खुद हम अपनी दुकाँ के थे

शब्दार्थ
<references/>