भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दस दोहे - 1 / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1

ऊँच, नीच और जात सें, जिन खों रहौ परेज,
नईं कर पाए वे कभऊँ, औगुन कौ बंदेज ।

2

पूछत नईंयाँ हाल तक, बनौ फिरत है ख़ास,
नीछत सबकौ चामरौ, कर दऔ सत्यानास ।

3

छोड़ौ बातें नोट की, बनौ रहन दो खोट,
हम नंगन पै का, धरौ रै गऔ फटौ लंगोट ।

4

डार नाक पै चींथरा, खूब बजा रए गाल,
सरम बेंच दई हाट में, मौटी हो गई खाल ।

5

आबादी के सामने, कछू न बैठै औज,
बाराना दुख झेलवें, चाराना की मौज ।

6

सुख की ओढ़े ओढ़नी, सुविधा को सिंगार,
ऐसी जीवन नार सें, हुइयै कबै चिनार ।

7

चढ़ौ करेला नीम पै ,करऔ हो गऔ और,
न्याय मागवे आए हम, जो मुखिया की पौर ।

8

धरम करम उपदेश तौ, भरे पेट कौ काम,
जब हो भूखौ आदमी, का रहीम का राम ।

9

भूख लगी है पेट में, कितै टिकैगौ ध्यान,
और कहूँ तुम जान कैं, बाँटो अपनौ ज्ञान ।

10

ऐसौ कैसौ राज है, ऐसी कैसी रीत,
मेंनत की तौ हार है, बदमासी की जीत ।