भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिक्-काल / दिनेश्वर प्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ वह बिन्दु
जिस पर मैं टिकूँ ?

कहाँ वह क्षण
जिसमें मैं रुकूँ ?

धारा में
मेरा परिचय बह गया है ।

शून्य कभी दर्शन था,
अब गणित हो गया है ।