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दिन पर दिन रहे बीत / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / प्रयाग शुक्ल

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देखूँ मैं राह दिन जाते बीत
पवन बहे वासन्ती गाऊँ मैं गीत
करता सुर-खेल, आया ना मीत

बेला यह कठिन बड़ी
करती बस छल
स्वप्न सा दिखती है मुझको हर पल
दिन पर दिन जा रहे
रहे अरे बीत

आते ना पास
दे जाते मुझको तुम
ये कैसी प्यास
जानूँ मैं जानूँ मैं
दुख वही पाता है जो करता प्रीत

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल