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दिया तन माट्टी में घोळ, फेर बी मेरी गेल्यां रोळ / हबीब भारती

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दिया तन माट्टी में घोळ, फेर बी मेरी गेल्यां रोळ
मन्नै पाट्या कोन्या तोल, क्यूं लावैं दूज्जे मोल,
मेरा लिकडै़ कोन्या बोल, सहूं रो रो मन मैं ।।
 
अपनी का भा सब टेक्कैं, ना कोए जात मजहब नै देक्खैं
लिया बीज चाहे खात, चाहे जूती लते भात
लूण तेल और पात, चाही काळी कलम दवात
फेर मेरी गैल दुभांत, कहूं रो रो मन मैं
 
करूं बस अन्न की पैदावार, बाकी सब चीजां का खरीददार
कदे ओळे कहत का दौर, कदे मरज्यां डांगर ढोर,
जिनके हाथ राज की डोर, वो करते कोन्या गोर,
मेरा चाल्लै कोन्या जोर, सहूं रो रो मन मैं
 
मैं कहाऊं सूं जमींदार बी, पर बीघे कोन्या च्यार बी
मेरा फूट्या पड़्या मकान, ना रहै कुत्ते का ध्यान
ना पढ़ाणे का उनमान, बेचारे ढोवैंगे अज्ञान,
उनकी बिगड़ज्या जुबान सहूं रो रो मन मैं
 
मैं सारी उमर कमाऊं, फेर बी बुढ़ापे मैं दुख पाऊं
घलज्या पोळी के मैं खाट, देखूं दो टूकां नै बाट
फेर लेज्या टी.बी. चाट, चाहे बाहमण हूं या जाट
हों पेंशनर के ठाठ दहूं रो रो मन मैं
 
हबीब भारती सच बतावै, बिन लड़े ना मुक्ति पावै
रहे महलां आळे लूट, बैरी गेर कै नै फूट,
बिन भरे सब्र के घूंट, तज जात मजहब के झूठ,
ले समिति के संग ऊठ कहूं टोह टोह मन मैं