भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल तो इक शख़्स को नख़चीर बनाने में गया / 'महताब' हैदर नक़वी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल तो इक शख़्स को नख़चीर बनाने में गया
साज़-ए-दिल नग़मा-ए-दिल-गीर बनाने में गया

रात इक ख़्वाब जो देखा तो हुआ ये मालूम
दिन भी उस ख़्वाब की तस्वीर बनाने में गया

परतव-ए-ख़ाना-ए-मौहूम ग़नीमत था मगर
वो भी इक नक़्शा-ए-तामीर बनाने में गया

रूह तो रूह है कुछ बस नहीं इस पर लेकिन
ये बदन ख़ाक को इक्सीर बनाने में गया

यार तो दिरहम ओ दिनार बनाने में गए
और मैं इश्क़ की जागीर बनाने में गया

शेर तासीर से ख़ाली हुआ वक़्त-ए-ताबीर
नफ़्स-ए-मज़मून भी तक़रीर बनाने में गया