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दीपक / महेन्द्र भटनागर

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मूक जीवन के अँधेरे में, प्रखर अपलक
जल रहा है यह तुम्हारी आश का दीपक !

ज्योति में जिसके नयी ही आज लाली है
स्नेह में डूबी हुई मानों दिवाली है !

दीखता कोमल सुगन्धित फूल-सा नव-तन,
चूम जाता है जिसे आ बार-बार पवन !

याद-सा जलता रहे नूतन सबेरे तक,
यह तुम्हारे प्यार के विश्वास का दीपक !
1948