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दुःख का पता / नितेश व्यास

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सुबह के साथ ही
एक कसमसाता उदास दु: ख
न जाने कहाँ से आकर चिपक जाता है
घर के दरवाज़े से
सबसे पहले मैं ही उतारता हूँ देहरी पर उसकी आरती
कभी अख़बार लेने के बहाने
कभी पानी आया न आया, जानने के बहाने
अख़बार नहीं आता वार-त्यौहार
पानी की कटौती भी होती है
महिने में एक दो बार
लेकिन
पागल प्रेमी-सा भटकता दु: ख
बन्द आँखों भी पहुँच ही जाता
मेरे द्वारे
ऐसे में मैने उसे दे दिया
एक स्थाई पता
हृदय-द्वार पर नामपट्ट भी उसी का है
दु: ख का स्थाई पता
एक कवि का हृदय।