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दुआराम / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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तू आ तू आ दुत्कारे भैया,
लात ज़ोर से मारे भैया।
कल्लू-मल्लू की टोली को,
आ बेटा दुत्कारे भैया।

कल्लू ने भीतर घुस-घुसकर,
हाथ-पांव फटकारे कसकर।
पूरा ज़ोर लगा डाला है,
मार किसी को न पाए पर।

उधर घुसे जब दुआरामजी,
कल्लू पर ही हमला बोला।
संभल न पाए गिरे फिसलकर,
कल्लू थे फुटबॉल का गोला।

गिरे हुए पर दुआराम ने,
चार हाथ फटकारे भैया।

अब मल्लू ने हिम्मत बाँधी,
दुआराम पर झपटे आकर।
कैसे भी हो अपने दल को,
छोड़ेंगे वे जीत दिलाकर।

दुआराम ने क़दम बढ़ाकर,
मल्लूजी पर घेरा डाला।
तू आ तू आ करते-करते ही,
मल्लू भी गिर पड़ा बेचारा।

पकड़ सभी ने उन्हें मरोड़ा,
अब हारे तब हारे भैया।

पर मल्लूजी उठे उचककर
, चीता बनकर झपट पड़े वे।
हाथ बढ़ाकर दुआराम को,
लगे मारने खड़े-खड़े वे।
दुआराम ने पकड़ा उनको,
और पकड़कर उन्हें गिराया।
उखड़ी सांस हार गए मल्लू,
पथ बाहर का उन्हें दिखाया।

दुआराम की जीत हो गई,
बने आँख के तारे भैया।

कल्लू-मल्लू के दल वाले,
अब तो हिम्मत हार चुके थे।
दुआराम भी आगे बढ़कर,
सबके भूत उतार चुके थे।

सबने पकड़ी टांग दुआ की
पकड़-पकड़कर मार गिराया।
किंतु दुआ का हाथ लपककर,
लक्ष्मण रेखा को छू आया।

कल्लू-मल्लू के दल वाle
बुरी तरह से हारे भैया।