भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुनिया मिली तो क्या है ये मेरी नहीं थी चाह / बेगम रज़िया हलीम जंग
Kavita Kosh से
दुनिया मिली तो क्या है ये मेरी नहीं थी चाह
सब कुछ मुझे मिलेगा जो होगी तेरी निगाह
तेरी निगाह-ए-नाज़ से मसहूर काएनात
तेरी निगाह-ए-नाज़ का जादू है बे-पनाह
तेरी तो काएनात है मैं भी उसी में हूँ
कम-तर मैं एक ज़र्रे से और तू है बादशाह
अपना ले मुझ को और ज़रा क़ुर्ब बख़्श दे
कब से भटक रही हूँ चला मुझ को अपनी राह