भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूब / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम रहते हैं इस गाँव में और
तुम रहते हो पास के गाँव में
हमारे गाँव में बारिश होने पर
पास के गाँव में भी बारिश होती है
दो गाँव का एक ही कुआँ
पिया है पानी एक ही जल का
हमारे गाँव में उगने पर चाँद
तुम्हारे गाँव में काँपता है हीजल ।

हीरकपुर, मुक्तपुर
दो गाँव के दो-दो नाम
हिन्दू रहते हैं इस गाँव में
उस गाँव में मुसलमान.
इस गाँव के तुलसी पत्ते
पूजा में लगता है मुक्तपुर के
मुक्तपुर में नमाज पढ़ना ................
अरबी सुर में ।

इस गाँव में यदि होती है किसी की शादी है
उस गाँव से आती है दूब
इस गाँव से उस गाँव जाने पर दूब को खुद भी अच्छा लगता है
दूब हुआ एक नाम
दूब एक राय किशोरी
एक लड़का डूबने आया
कहा तब डूब के ही मरें.
गहरी नदी में उठे तूफ़ान
बारिश होती है, बारिश तुम
हिन्दू हो कि मुसलमान ?
बारिश कहती है मेरा काम,
मिटटी की छाती में झर-झर गिरना
मिटटी का काम मुझे पकड़कर फसल उगाना.
मैं जब बारिश होती हूँ
समान भाव से दोनों गाँवों में जाती हूँ
धर्म देखकर मैं नहीं झरती
सभी को जिससे बारिश मिल सके
लेकिन किसने कहाँ से आकर
इस गाँव में गंडगोल किया
फटा बम, छूटा तीर
बुझ गई दो गाँवों की रौशनी ।

आई पुलिस, पत्रकार
बैठे काँटों के बेड़े पर
दूब नाम की वह लड़की
वह हो गई उस पार की.
लड़का आज इस पार का कहाँ से क्या घटा
मार खाकर वह हुआ है आज
नया मानचित्र खुद ।

लड़की रोती है, लड़की हंसती है
हंसने पर उसका खून गिरता है
लेकिन दोनों गाँव में आज भी
समान भाव से बारिश झरती है
लड़का अकेला, माँ-भाई-बहन
सभी ने उसका त्याग किया
लेकिन दोनों गाँवों के मैदानों में
आज भी समान भाव से बारिश आती है ।

मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर