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दूरबीन / रफ़ीक सूरज / भारत भूषण तिवारी

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आप मुझे अपनी मर्ज़ी से
घूमने - फिरने देना नहीं चाहते
या मेरी हर एक गतिविधि पर
रोक लगाना चाहते हैं
तो मुझे कम-अज़-कम
खुलकर बोलने तो दीजिए
वह भी मुमकिन न हो तो
लिख लेने दीजिए न कविता की दो पंक्तियाँ !

कविता की दूरबीन से मैं
देख पाऊँगा आपकी आँखों में
मेरे प्रति लबालब जमा हुआ द्वेष
जिसे दूर करने की मैं कोशिश कर पाऊँगा...

मैं कल रहूँ, न रहूँ
मगर मेरी कविता ज़रूर
मेरी-आपकी-हर एक की स्वतंत्रता का गीत
गुनगुनाती रहेगी...!

मूल मराठी से अनुवाद : भारत भूषण तिवारी