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देखो मन की कठिन मार / संत जूड़ीराम

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देखो मन की कठिन मार, संग सलौनी पाँच नार।
पाँच-पचासी पंच कीन, सुरनर मुनि को देउ दीन।
जोग भोग वन विच विहार, है अदबुद लीला यह अपार।
तब जग खेलत आय बाय, जिहि सिर लागै जो न धाय।
गति मति कोई सको रोक, तीन लोक बस भयो ओक।
भौसागर की कठिन धार, मोह लहर माया अपार।
कनक कामनी रचो खेल, खिचत न मानत तनक केल।
जिनके है निज नाम एक, सुई जन मन की गहत टेक।
जूड़ीराम गुरु ज्ञान साज, भौसागर को है जो जहाज।