भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देख, कांटों में देख / कैलाश पण्डा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देख, कांटों में देख
डर मत कांटे तो भ्रम है केवल
भ्रम तो है बाधा ही शेष
कंटक सेज बिछाये जो बैठे
कोमल सुन्दर सुखद निराले
देते संदेश बयार संग
सुगंध फैलाते जीवन पर्यन्त
मधुता ले आती मक्षिका भी
जो देती सदैव विषदंश
विस्मरण कर स्वयं के कोप का
संग्रह करती मधुनंद
तोड़ कर ले जाते माली भी
बींध कर सुचिवेध से
बनाते माला
होते कितने प्रताड़ित
आखिर कुचले भी जाते
खिलते फिर भी पुष्प हठीले
हार नहीं व्यापार है ये तो
कोई पहचान ना पाये कोई समझे
सुख देकर सुखानुभुति जो करते
वे चिर आनंद धाम को पाते
सिद्धों का अनुसरण कर
निश्चित प्रभु चरणों को पाते।