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देख गोबरधन / बुद्धिनाथ मिश्र

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देख गोबरधन वर्दी कुर्सी
कपडों का सम्मान
और जोर से चिल्ला-
अपना भारत देश महान।

क्या है तेरे पास, कलम का
क्या है यहाँ वजूद ?
काला अक्षर देख, सभी हैं
लेते आँखें मूँद

इससे अच्छा तबला, घुंघरू
खेलों का मैदान
जिनके आगे दाँत निपोरे
पद्मश्री श्रीमान्।

निगल गया ’राबन‘ का चश्मा
गाँधी की ऐनक
अंधे बहरे ब्रह्मा से
क्या माँग रहा तू हक ?

रजनी-सजनी की किताब लिख
मत कर यहाँ गुमान
कविर्मनीषी सिर्फ यहाँ
अफसर, मंत्री धनवान।

कंकरीट के घने जंगलों में
बरसेगी आग
जीना है तो ढूँढ पेड की
छाँह, यहाँ से भाग

नंगा नाच देख रघुकुल का
वाल्मीकि हैरान
असली से नकली है मँहगा
जान, न बन अनजान।