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देख दुःख का वेष धरे मैं नहीं डरूँगा तुमसे, नाथ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग भैरवी-ताल धुमाली)
देख दुःखका वेष धरे मैं नहीं डरूँगा तुमसे, नाथ!
जहाँ दुःख वहाँ देख तुम्हें मैं पकडूँगा जोरों के साथ॥
नाथ! छिपा लो तुम मुँह अपना, चाहे अति अँधियारे में।
मैं लूँगा पहचान तुम्हें इक कोनेमें, जग सारे में॥
रोग-शोक, धन-हानि, दुःख, अपमान घोर, अति दारुण क्लेश।
सबमें तुम, सब ही है तुममें, अथवा सब तुम्हरे ही वेश॥
तुम्हरे बिना नहीं कुछ भी जब, तब फिर मैं किस लिये डरूँ।
मृत्यु-साज सज यदि आओ, तो चरण पकड़ सानन्द मरूँ॥
दो दर्शन चाहे जैसा भी दुःख-वेष धारणकर, नाथ!
जहाँ दुःख वहाँ देख तुम्हें, मैं पकडूँगा जोरोंके साथ॥