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देह भाषा / दिलीप शाक्य

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उसकी देह
उसकी भाषा को रौंद कर आगे निकल आई

टूटकर बिखर गया
उसके लिबास का कसा हुआ वाक्य
छिटक कर दूर जा गिरे नींद में हँसते हुए शब्द

इससे पहले कि संभलता मेरी लिपि का व्याकरण
तालू से चिपकते गए वर्ण
गले में रुँधती गईं ध्वनियाँ
होश की तरह छूट गई साँसों से वर्तनी

आँखों में पिघलता रहा कोई मधुवन
रोम-रोम में समा गई गंध