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दोस्तों के लिए जिन्होंने अब तक मुझे बचाया है / विमलेश त्रिपाठी

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कहीं नहीं था कोई जब वे ही थे मेरी रातों के दिये
खूब बरसात में छतरी की तरह तने
जेठ की खुरहुरिया में सुराही के ठण्ठे पानी

वे ही थे मेरे नादान डर और झूठ को
अपने बस्ते में छुपाए
कक्षा के सबसे पिछले बेंच पर मेरे साथ बैठे
मास्टर की छड़ियों के एक-एक आवाज़ पर
टुकुर-टुकुर ताकते बे-आवाज़ रोते हुए
सहते मेरे सारे दर्द अपने बच्चे देह पर
सपनों की हवा से मुझे ज़िन्दा करते

वह एक दौड़ता था मेरे छूट गए प्रवेश-पत्र लाने घर की ओर
हंकासा-पियासा
अपने इम्तिहान के छूट जाने से बेख़बर
एक चुप-चाप मलता था खईनी
खीच कर लाता था एक
मेरे अन्दर छुप कर बैठे पुरवी, चइता और फाग के तान

जब मिटता जा रहा था इस दुनिया से प्रेम
ढह रहे थे मन्दिर मस्ज़िद और गिरजाघर एक साथ
ऐन उसी समय एक सुनाता था बाँसुरी
उसके खाली पेट के फूँक से ज़िन्दा हो जाता था बाँस का वह टुकड़ा
तब कहां पता था उसके घर
नहीं आते थे छान्ही पर कौए
नहीं आती थी आँगन में गौरयों का भीड़

एक सुनाती थी निराला और सर्वेश्वर की कविताएँ
पाश का नाम एक ने सुनाया
एक ने सिखाया सुर में गाना और प्रेम करना
और एक थी जिसने प्रेम को सहना सिखाया

एक ने भांग पिलाई और हुगली के किनारे बैठना
एक के लिए घण्टों बैठकर लिखी मैंने प्रेम कविताएँ
एक के कारण मैं मरने से बचा
दूसरे ने आत्महत्या करने से बचाया

एक और थी जो मेरे रफ़-कॉपियों में प्रेम लिखती थी
और मेरे हाथ को इतने जोर से दबाती
कि दो दिन तक दर्द होता रहता
लेकिन उस दर्द में एक रूहानी ख़ुशी और गर्व मिले रहते

ओ मेरे छूट गए दोस्तों
आज खड़ा हूँ तुम्हारे एक एक पाँव पर
मेरे होने में तुम सब हो शामिल मौन

चले आओ आज अरब, दिल्ली, सूरत और
लुधियाना के कारख़ानों और पंजाब के खेतों से निकलकर
नचनिया बजनिया की दुनिया को छोड़
खेत-खलिहानों को छोड़ आ जाओ मेरे पास

पति-पत्नियों के ताने सहकर भी
बच्चों की किलकारियाँ भूलकर कुछ समय
चले आओ कुछ देर बैठते हैं साथ

आओ कि एक ज़माने बाद
हँसते हैं ख़ूब- ख़ूब मिलकर
रोते हैं एक साथ-समवेत आज ख़ूब-ख़ूब......