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दोहा / भाग 8 / रसलीन

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अद्भुत मय सब जगत यह, अद्भुत जुगत निहार।
हार बाल गर परत हीं, पर्यो लाल गर हार।।71।।

चलत हलत नित बाँह तुव, देति कोटि जिय दान।
याही तें सब कहत हैं, सुधा लहुर परिमान।।72।।

सुधा लहर तुव बाँह के, कैसे होत समान।
वा चखि पैयत प्रान को, या लखि पैयत प्राण।।73।।

कित दिखाइ कामिनि दई, दामिनि को यह बाँह।
तरकरात सीतन फिरै, फरफरात घन माँह।।74।।

मोहन सीखन बसि करन, उनमादन उचटाय।
मदन सरन गुन तरुनि के, अँगुरिन लियो छिनाय।।75।।

तिय प्रति इँगुरिन फलन में, त्रय त्रय पोर सुहाय।
तीन लोक बस करन को, बीज बये हैं आय।।76।।

यों अँगुरी तिय करन की, लागत नखन समेत।
औषधीश गुन अमिय मनु, जीवन मूरिन देत।।77।।

रंग बिरंग चूरी नहीं, लखि रवि कंकन भेखु।
हरि सन बिनय बली मनो, कर परसन पर बेखु।।78।।

सकुचत कंपा गात लखि, संया नहिं ठहराय।
या को तन कंपा भयो, झंपा गगन बनाय।।79।।

देह दीप्ति छवि गेह की, किहिं बिधि वरनी जाय।
जा लखि चपला गगन तें, छिति पटकत निज आय।।80।।