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दोहे / राजपाल सिंह गुलिया

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1.
बोल बहू का एक बस, पड़ा सास के कान।
उस दिन से ही सास की, खुलती नहीं ज़बान॥
2.
बात करें कुछ बैठकर, करें हास-परिहास।
समय कहाँ है आजकल, सम्बंधों के पास॥
3.
बिजली पानी गुम हुए, गए सड़क भी खोद।
जब से एक वजीर ने, लिया गाँव ये गोद॥
4.
उस अर्ज़ी की अर्ज़ ये, गर्म करो पाकेट।
जिसे दबा कर मेज पर, बैठा पेपरवेट॥
5.
देते किसी रईस को, लाभ छूट जो खास।
होते वह प्रस्ताव ही, अब ध्वनिमत से पास॥
6.
रख औषध परिहास की, हरदम अपने पास।
लेना एक खुराक जब, दिल हो बहुत उदास॥
7.
अखर निशा को भी गई, तारों की ये बात।
ठीक नहीं ये चाँद का, आना रात बिरात॥
8.
लोकतंत्र में बहुत ही, घातक है ये खोट।
लोभी और अबोध जो, बन बैठे हैं वोट॥
9.
जल ने बोतल से किया, ऐसा ग़ज़ब करार।
प्याऊ और छबील को, लील गया बाज़ार॥
10.
टूट गई सब खिड़कियाँ, किरचें-किरचें काँच।
बिखरे पत्थर माँगते, उच्चस्तरीय जाँच॥