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दो दिगन्‍त ! / प्रेमशंकर शुक्ल

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दो दिगन्‍त !
अपने कन्धों पर
तुम्‍हें झुला रहे हैं
बड़ी झील !
और यह आसमान
कितनी बार मुँह धोएगा
तुम्‍हारे जल में

देखो न बड़ी झील !
दिन-दोपहर ये परिन्‍दे
अपने चोंच से
तुम्‍हारे पानी की तस्‍करी कर रहे हैं ।