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द्वार थपथपाया क्यों तुमने ओ मालिनी / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / प्रयाग शुक्ल
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द्वार थपथपाया क्यों तुमने ओ मालिनी
पाने को उत्तर, ओ किसने क्या मालिनी
फूल लिए चुन तुमने, गूँथी है माला
मेरे घर अन्धकार, जड़ा हुआ ताला
खोज नहीं पाया पथ, दीप नहीं बाला
आई गोधूलि और पुँछती सी रोशनी
डूब रही स्वर्णकिरण अन्धियारी में सनी
होगा जब अन्धकार आना तब पास में
दूर कहीं पर प्रकाश जब हो आकाश में
पथ असीम, रात घनी, सुनो दीपशालिनी
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल