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धन-‌ऐश्वर्य, सफलता भौतिक / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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(तर्ज लावनी-ताल कहरवा)

धन-‌ऐश्वर्य, सफलता भौतिक, पद-‌अधिकार, मान-समान।
प्रचुर भोग-साधन, निरोग तन, राग-युक्त इन्द्रिय बलवान॥
सभी अपूर्ण, अनित्य, क्षणिक हैं; सभी मृत्युमय, दुःखागार।
भूलो नहीं इन्हें पा, क्षणभर प्रभु-पद-रति-रस-सिन्धु अपार॥
मानव-जीवनका न कभी है लक्ष्य अशुचितम भौतिक भोग।
लक्ष्य एक ही, रहे सुदृढ़ नित प्रभुसे भेद-शून्य संयोग॥
हों मन-बुद्धि-‌इन्द्रियों के सब इसी हेतु सुविचार सुकर्म।
है पुनीत कर्तव्य यही मानव का, यही एक शुचि धर्म॥