भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धार / रविकान्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देश में हाँफ रहा है असली देश
सुख में गुम है सुख
दुःख के ब्रह्मांड में छुपाकर रखा गया है
असली दुःख

चेतना ढूँढ़ती है अपनी धार
संघर्षरत होने पर भी कुछ लोग
नहीं चख पाते कोई स्वाद!

सूरज के आर-पार जब कभी
वेदना सहलाती है आकाश
लगता है
हाँ, जी रहा हूँ मैं