भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुंध-सी छाई हुई है आज घर के सामने / नित्यानन्द तुषार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुंध-सी छाई हुई है आज घर के सामने
कुछ नज़र आता नहीं है अब नज़र के सामने

सिर कटाओ या हमारे सामने सजदा करो
शर्त ये रख दी गई है हर बशर के सामने

सोचता हूँ क्यूँ अदालत ने बरी उसको किया
क़त्ल करके जो गया सारे नगर के सामने

देर तक देखा मुझे और फिर किसी ने ये कहा
आज तो मुझको पढ़ो, मैं हूँ नज़र के सामने

कल सड़क पर मर गए थे ठंड से कुछ आदमी
देश की उन्नति बताते पोस्टर के सामने

लौटना मत बीच से पूरा करो अपना सफ़र
हल करो वो मुश्किलें जो हैं डगर के सामने