भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नए सफ़र की लज़्ज़तों से जिस्म ओ जाँ को सर करो / 'महताब' हैदर नक़वी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नए सफ़र की लज़्ज़तों से जिस्म ओ जाँ को सर करो
सफ़र में होंगी बरकतें सफ़र करो सफ़र करो

उदास रात के गुदाज़ जिस्म को टटोल कर
किसी की ज़ुल्फ़-ए-साया-दार की गिरह में घर करो

जो आँख हो तो देख तू सराब ही सराब है
न ऐतबार तिश्नगी में मौज-ए-आब पर करो

पुरानी आस्तीन से पुराने बुत करो रिहा
नई ज़मीन पर नए ख़ुदा को मोतबर करो

जमाल-ए-यार से करो कभी नज़र को पाक भी
ख़याल-ए-यार से कभी कभी शबें सहर करो