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नक़ल देखना क्या असल जानता हूँ / सूर्यपाल सिंह

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नक़ल देखना क्या असल जानता हूँ।
चढ़े रंग में हो विकल जानता हूँ।

हुआ जो षहर बीच दंगा यहाँ कल,
रहा कौन मुस्का निकल जानता हूँ।

निकल धूप आए कुहासा कटेगा,
मिटे षीत दुश्कर सबल जानता हूँ।

अभी आज सहला रहा पांव तलवा,
वही पूछता है न कल जानता हूँ।

अकेला हुआ आदमी आज बेष़क,
न बेपर हुआ एक पल जानता हूँ।