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नजरों की सीढ़ी / ऋतु त्यागी

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एक बार मैंने अनचाहे ही चाहा
कि सबकी नज़रों की सीढ़ी की
सबसे ऊँची पायदान पर बैठ जाऊँ !
पारंगत होने केे लिए
मैंने निचली पायदान से प्रयास किया
पर पहले प्रयास में ही मेरा पैर फिसला
और मैं धड़ाम
क्योंकि मैं अनाड़ी थी सीढ़ी पर चढ़ने के फार्मूले से अनजान थी
मुझे दर्द हुआ जो कि होना ही था
पर मैंने भी बिना दर्द की परवाह किए
अपने आसपास डकैत नज़र डाली
मेरा मतलब साफ़ था
सब अपने काम से काम रखो गिरने दो मुझे
क्योंकि गिरना मेरे शौक़ में शुमार था
अब मैं एक झटके से उठी
उठते-उठते मैंने एक काम किया
सबकी नज़रों की सीढ़ी अपनी नज़रों से गिरा दी ।
उस समय मैं पहली बार अपनी नाक़ामी पर
बेसाख़्ता हँसी थी
और इस बात पर भी
कि दुनिया की नज़रों में चढ़ने पर
गिरने का ख़तरा हमेशा बना रहता है।