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नजरों में मधुमास तुम्हारी / धीरज श्रीवास्तव

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नजरों में मधुमास तुम्हारी क्यों न लहकते गीत मेरे!
पंछी बन ये मन उड़ता जब क्यों न चहकते गीत मेरे!

प्रतिदिन छत पर साँझ उतरकर
रूप सँवारा करती है!
और नहाती जा सागर में
बदन उघारा करती है!

बाल खोल फिर मुस्काती जब क्यों न बहकते गीत मेरे!
पंक्षी बन ये मन उड़ता जब क्यों न चहकते गीत मेरे!

दिखता है अब मुझे चाँद पर
सदा तुम्हारा ही साया!
तप्त तुम्हारी साँसों ने ही
सूरज को है दहकाया!

छुआ अधर से जब तुमने तो क्यों न दहकते गीत मेरे!
पंक्षी बन ये मन उड़ता जब क्यों न चहकते गीत मेरे!

शब्द शब्द न्यौछावर तुम पर
यही सर्जना जीवन है!
शिल्प गढ़ा है प्रिये तुम्ही ने
भाव तुम्हारा यौवन है!

चंदन-सी जब याद तुम्हारी क्यों न महकते गीत मेरे!
पंक्षी बन ये मन उड़ता जब क्यों न चहकते गीत मेरे!