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नज़र की धूप में साये घुले हैं शब की तरह / फ़राज़

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नज़र की धूप में साये घुले हैं शब की तरह
मैं कब उदास नहीं था मगर न अब की तरह


फिर आज शह्रे -तमन्ना<ref>इच्छाओं का नगर</ref>की रहगुज़ारों<ref>मार्गों</ref>से
गुज़र रहे हैं कई लोग रोज़ो-शब <ref>दिन-रात</ref>की तरह

तुझे तो मैंने बड़ी आरज़ू<ref>अंतर्मन</ref>से चाहा था
ये क्या कि छोड़ चला तू भी और सब की तरह

फ़सुर्दगी<ref>उदासी</ref>है मगर वज्हे -ग़म<ref>दु:ख का कारण</ref>नहीं मालूम
कि दिल पे बोझ-सा है रंजे-बेसबब<ref>अकारण दु:ख</ref>की तरह

खिले तो अबके भी गुलशन <ref>उद्यान</ref>में फूल हैं लेकिन
न मेरे ज़ख़्म<ref>घाव</ref>की सूरत न तेरे लब <ref>होंठ</ref>की तरह

शब्दार्थ
<references/>