भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी में नहाती हुई औरत / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदी में एक औरत नहा रही है
और दूर स्तब्ध है सूर्य ।

वह हौले से धरता है अपने कन्धों पर
अपनी सुनहरी किरणों का हाथ ।

वृक्ष दूर तक पसारते हैं अपनी छाँव
ताकि छू सकें उसका चेहरा, उसकी बाहें ।

ख़ामोश मन्त्रमुग्ध हैं नरकुल
रोड़े तक निस्तब्ध ।

दुनिया में कहीं कुछ नहीं है, फिलवक़्त
न मृत्यु, न दुख, न हताशा ।

न शीत, न झँझावात,
न सींखचे, न सलाखें, न युद्ध ।

महाद्वीप में कहीं कुछ गड़बड़झाला नहीं
चतुर्दिक शान्ति है :
नदी में एक औरत नहा रही है ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना