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नन्दा / अज्ञेय

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शरद की धुन्ध बढ़ आयी है
गलियारों में
उजले पाँवड़े पसारती।
चीड़ की पत्तियाँ।
तमिया गयी हैं
छोरों पर-
(बस, आग की फुनगी-सी पीतिमा कोरों पर)-
डालें मुड़-मुड़ कर
ऊपर को जाती-सी
हवा के झोंके साथ
मंडल बनाती-सी
चीड़ : दीप-लक्ष्मी
निर्जन में नन्दा की
आरती उतारती!