भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नभ, अनिल, अनल, जल, पृथ्वी, रवि-शशि-तारे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(तर्ज लावनी दूसरी-ताल कहरवा)
नभ, अनिल, अनल, जल, पृथ्वी, रवि-शशि-तारे।
सब जीव चराचर दिशा-द्रुमादिक सारे॥
सर-सरिता-सागर सब कुछ श्रीहरि का तन।
यह जान करे सबका अनन्य अभिवन्दन॥