भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया वर्ष है आया / सच्चिदानंद प्रेमी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नया वर्ष है आया भाई
               नया वर्ष है आया,
नई-नई ले अभिलाषाएं,
ह्रदय- सुमन मुस्काया!
   कल की बातें हुई पुरानी-
          बीती रजनी काली,
उदय श्रिंग से फूट रही है
       ऊषा की नवलाली;
कण-कण पर है नई उमंगें-
           मन मानस लहराया!
सूखे तरुओं पर नव पल्लव-
            की छाई अरुणाई,
गीत विहग के खुले पंख में
           जागी नव तरुनाई ;
नए वर्ष में नए हर्ष का-
               उत्सव साज सजाया!
दुःख की घटा न घेरे छन भर-
        सुखद केतु नित फहरे,
चंदा को छूने को ललकें-
         मन-अम्बुधि की लहरें;
आशा की किरणों से दृग में
नव प्रकाश है छाया।
नया वर्ष है आया भाई
               नया वर्ष है आया।