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नरमेध के नायक / प्रेमचन्द गांधी

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नहीं
वे कहीं से जल्‍लाद नज़र नहीं आते
उनकी शक्‍लें बिल्‍कुल आम होती हैं
वे दाढ़ी-मूंछ, लंबे बाल, सफाचट
कुछ भी रख सकते हैं
उनके हाथ-कपड़ों पर
कोई दाग़ नहीं होता खून का
वे बहुत साफ-सुथरे होते हैं
घृणा के विष में डूबे उनके विचार
अचानक ही प्रकट होते हैं
अन्‍यथा वे अत्‍यंत मानवीय
और सरल ह्रदय लगते हैं
बस, उनकी मुस्‍कान में ही गड़बड़ी है
जो भयग्रस्‍त लोग ही समझ पाते हैं
वे अक्‍सर शांति, समरसता और समन्‍वय की बातें करते हैं
उनके पास हमेशा होती हैं दलीलें
जिन्‍हें साबित करने के लिए वे
एक दिन, तीन दिन, नौ दिन और पूरे महीने
उपवास कर सकते हैं
उनके माथे पर तिलक, नमाज या प्रार्थना का
कोई भी निशान हो सकता है
वे अमूमन अपने पवित्र ग्रंथों से मिसाल देते हैं
और हमेशा किताबी सहिष्‍णुता की बातें करते हैं
वे जब भी अमन की बातें करते हैं
मेरे जैसे भयग्रस्‍त लोग डर जाते हैं
इतने सुंदर और भव्‍य हैं वे कि
उनसे डरना तो नहीं चाहिए
लेकिन क्‍या करूं
उनका सौम्‍य व्‍यक्तित्‍व
मुझे पुराने सेनापतियों के साथ
ऐतिहासिक युद्धों की याद दिलाता है
ओह नहीं, युद्ध में तो सेनाएं लड़ती हैं
लेकिन जंग के बाद मैदान में बिछी लाशें
वैसे ही जलती हैं
जैसे सौम्‍य नायकों के नरमेध में
सड़कों पर जलती हैं
अब तो इन सड़कों पर
चलने में भी भय लगता है
सत्‍ताधारी नायकों ने
इतनी भव्‍य बना दी हैं सड़कें कि
यहां फैले खून, आगजनी का कोई निशान नहीं बचा
आप सिर्फ सहमे हुए दरख्‍तों से
उस नरमेध की गवाही ले सकते हैं
एक बदकिस्‍मत बेचारा
जो किसी तरह बच गया था नरमेध में
कहता है उसकी तस्‍वीर का इस्‍तेमाल बंद हो
सोचिए डर की कितनी गहरी परतों के नीचे से
निकल कर आई है यह गुजारिश
मौत के मुहाने से बचकर आया आदमी
नहीं चाहता उस क्षण की तस्‍वीर देखना
इस दुनिया में आपकी ऐसी तस्‍वीरें भी होती हैं
जो खुद नहीं देखना चाहते आप
न लोगों को दिखाना चाहते
यही नरमेध के नायकों का करिश्‍मा है
सब कुछ शांत है
कहीं कोई अपराध नहीं
छल-कपट-चोरी-चकारी नहीं उनकी सल्‍तनत में
उद्योगपति तक खुश हैं उनसे
रंजिश नहीं, ग़म नहीं
ग़म भुलाने का इंतजाम नहीं
ऐसे महानायक हैं तो अब
उन्‍हें होना ही चाहिए चक्रवर्ती
लोग उतर आए हैं समर्थन में
अब पूरा देश प्रयोगशाला होगा
सावधान...