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नहीं अस्तित्व ही होता मिले दमखम नहीं होते / बाबा बैद्यनाथ झा

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नहीं अस्तित्व ही होता मिले दमखम नहीं होते
हमारी माँ नहीं होती जगत में हम नहीं होते

जहाँ में लोग आते हैं मिले सुख-दुख यहाँ उनको
खुशी का अर्थ क्या जाने मिले जब ग़म नहीं होते

सुबह में सूर्य उगता है यही संदेश देता है
उजाले बाँट देने से उजाले कम नहीं होते

यहाँ पर आदमी पशु में रहे जब एक-सा सबकुछ
कहो फिर फर्क क्या होता अगर शमदम नहीं होते

पलायन कौन करता है जिसे उपलब्ध हो सबकुछ
महल को त्यागने वाले सभी गौतम नहीं होते

किसी की बेबफाई से अभी तक रो रहा य्बाबाय्
खुशी से जी रहा होता मिले मातम नहीं होते