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नाच रही है वर्षा रानी / मधुसूदन साहा

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बादल बजा रहा है मादल
नाच रही है वर्षा रानी।
बिजली पल-पल थिरक रही है
झींगुर झांझ बजाते हैं,
अपने पंचम स्वर में मेढ़क
राज मल्हार सुनाते हैं,
जाने किधर दौड़ता जाता
नदियों का मटमैला पानी।
सूखी सरिता उमड़ पड़ी है
लता गुल्म हरियाये हैं,
गरमी में झुलसे पौधों के
अच्छे दिन फिर आए हैं,
भर कर पोखर उफन रहा है
करती है मछली नादानी।
रिमझिम-रिमझिम बूंदे पड़तीं
झम-झम पड़ता पानी है,
आँगन में तुलसी चौरा पर
भींग रही क्यों नानी है?
अगर हुई बीमार कहीं तो
कौन कहेगी रोज कहानी?