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निगाह ओ दिल के पास हो वो मेरा आश्‍ना रहे / मज़हर इमाम

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निगाह ओ दिल के पास हो वो मेरा आश्‍ना रहे
हवस है या कि इश्‍क़ है ये कौन सोचता रहे

वो मेरा जब न हो सका तो फिर यही सज़ा रहे
किसी को प्यार जब करूँ वो छुप के देखता रहे
 
उसे मना तो लूँ मगर ये सिलसिला भी क्या रहे
अलग है उस का ज़ाइक़ा कि वो खिंचा खिंचा रहे

मशाम-ए-जाँ पे ख़ुशबुओ की जब फुवार ही न हो
हज़ार बात बात में वो फूल टांकता रहे

शगुफ़्तन-ए-जमाल को हिजाब-ए-लम्स चाहिए
फ़सील-ए-षब की ओट में चराग़ ये जला रहे

न इतनी दूर जाइए कि लोग पूछने लगें
किसी को दिल की क्या ख़बर ये हाथ तो मिला रहे