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निर्वासन / पंकज सुबीर

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मुझे भी निर्वासित घोषित कर दिया गया
साथ ही चुका हुआ भी
आरोप था
कि मेरी रीढ़ ही हड्डी
विद्रोह की भावना रखती है
साथ ही उसका
खुले तौर पर प्रदर्शन भी करती है
और इसीलिए मैं नहीं ले पाता हूँ
धूल
महान चरणों की।
लेकिन मैं जानता हूँ
कि वास्तव में ऐसा नहीं है
वस्तुतः मैं कई बार झुका भी था
लेकिन मैं अभी आधा ही झुका था
कि अचानक
मुझे नज़र आ गया
उन महान चरणों के अंगूठों के सिरे पर
महान होने का दर्प
मैं झुकते झुकते फिर सीधा हो गया
और लौट आया
यकीन मानिए रीढ़ की हड्डी का
कोई दोष नहीं था
जो भी हो
फिलहाल मैं
निर्वासित हूँ
क्या फर्क पड़ता है इससे
कि दोष किसका था
मेरा?
मेरी नज़र का?
या मेरी रीढ़ की हड्डी का?