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न कोई साया, न सूरत उदास रहता हूँ / 'महताब' हैदर नक़वी
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न कोई साया, न सूरत उदास रहता हूँ
तेरे ख़याल के मंज़र में भी अकेला हूँ
मसर्रतों के दरख़्तों पे फूल आते थे
मता-ए-दर्द नहीं थी ख़रीद लाया हूँ
ग़रीब-ए-शहर को देखूँ तो घर न याद आये
वतन से दूर हूँ अब के बहुत अकेला हूँ
मेरे ख़ुदा मेरी वहशत में कुछ कमी कर दे
रग-ए-गुलाब से संग-ए-गिराँ उठाता हूँ
मैं तेरे नाम से रोशन करूँगा शहर तमाम
तेरे लिये मैं हँसी माहताब लाया हूँ