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न सही, याद / अज्ञेय

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 न सही, याद न करो मुझे
जिओ मेरी ही याद में-
तुम्हारा याद का समय तो
यों भी होगा-बाद में...
इतना ही है कि जो दिन, सोचा था,
बीतेंगे गीत के मधुर नाद में
वे झरते जाते हैं
एक विरस अवसाद में :
पर यही सही : मेरा दिन तो चुकने को है
मेरे क्षितिजों पर गुज़रता काफ़िला रुकने को है।
पर भोर-वह कल भी होगा : तभी कर लेना याद-
अंगार-स्याहपोश न हो, सुलगे तब भी-मेरे बाद!

नयी दिल्ली, मई, 1980