भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पंख पसारे पुरवा आई / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शीतलता अँजुरी में भरकर
पंख पसारे पुरवा आई
घर का कोना-कोना महका,
आंगन का सूनापन चहका,

खुशबू फैली दूर-दूर तक
माटी का अंतमन लहका,
शायद चंदन वन से इसने
मलयज की झोली भर लाई।

राहत मिली सभी को थोड़ी,
सबने उखड़ी सासें जोड़ी,
पिछवाड़े में जाकर इसने
नई निबौरी जीभर तोडी,

शीतलता ने सरस परस से
रोम-रोम में प्रीत जगाई।
झूम उठी बगिया कि क्यारी,
पंखुरियाँ लगती अति प्यारी,

टिटकारी सुनकर टिटही की
कली-कली भरती किलकारी,
सबके मन में नई खुशी की
मीठी-मीठी लहर समाई।