भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पड़ै न बल बाल-सी कमर पर / प्रेमघन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पड़ै न बल बाल-सी कमर पर,
समझ के चलिए ए चाल क्या है।

नजर के गड़ने से साफ चेहरे,
पैयार तेरे जवाल क्या है।

बहुत न इतराइये खुदा के लिए,
अभी सिन वह साल क्या है।

ए तेज कदमी अवस है साहब,
समझ के चलिए ये चाल क्या है।

ए फरशे गुल है जनाबे आली,
बताइए फिर खयाल क्या है।

गजब है अठखेलियों से आना,
सँभल के चलिए ए चाल क्या है।

मचाये महेशर ये चुलबुलाहट,
कि चाल तेरी मोहाल क्या है।

जिलाओ मुर्दों को ठोकरों से,
जो तुम मसीहा कमाल क्या है।

अजीब दाना धरे है सइयाद,
गाल अनवर पर खाल क्या है।

फँसा लिया तायरे दिल अपना,
ए बाल जंजाल जाल क्या हैं