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पता पूछना / शंकरानंद

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जब भी मैं जाता हूँ अनजान जगहों पर
भूल जाना चाहता हूँ वे तमाम कहानियाँ
जो भय पैदा करती हैं

वे कहानियाँ जो पता नहीं कब सुनी थी
वे हर वक़्त घूमती रहती हैं दिमाग में और
मन सिहर जाता है

किसी अख़बार की कोई ख़बर कौन्ध जाती है
कोई किरदार याद आ जाता है — 
मुश्किल में फँसा हुआ
मैं उन्हें याद करने से इनकार करता हूँ
मैं उन्हें भूल जाना चाहता हूँ

अगर कहीं रास्ता भटक जाता हूँ तो
बिना कोई सँकोच किए
पूछ लेता हूँ पता

जानता हूँ कि
सही रास्ता बताने वालों की कहानियांँ
कोई नहीं सुनाएगा ।