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पत्थरों पर अंकित इतिहास / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
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समय पर अपनी कलम से
लिख रहा था अतीत अपने आलेख
शताब्दियों पीछे का तय करते हुए फ़ासला
बस से उतर रहे थे हम
साँसों में समा रही थी पुरखों की मिट्टी की गंध
हमारे साथ-साथ सफ़र में था
पथ्थरों पर अंकित इतिहास
खुदाई के चौकोर गहवरों से
भागती आ रही थी शताब्दियों की प्राचीन हवा
अजनबी लिपियों में सोये पड़े थे साक्ष्य
नए जीवन के इंतजार में

पथ्थरों पर अंकित था इतिहास
हमारी मुलाक़ात हो रही थी
खंडहरों की उदासी से
जहाँ आज भी शेष है
राजनर्तकी के प्रासाद के ध्वंसावशेषों में
उसके नूपुरों की अनुगूँज
अपने समय का प्रेमाख्यान तलाशती
अभिषेक-पुष्करिणी के जर्जर घाटों से
सद्यःस्नाता भिक्षुणियाँ
मन्त्र बुदबुदाती माथा झुकाए गुज़रती हैं
उकेरती हुई आदिम पीड़ा की कविताऍ
थेरी गाथाओं में
एक अलस अंगड़ाई लेकर जाग पड़ी
शिलालेखों की इबारतें
नींद में चल कर आ रही थीं मेरे पास
अतीत के घोंसले में सोई सजल स्मृतियाँ

कालातीत देह धारण किये
पुरातन काल-पात्र से छिटक कर
औचक आ गया मेरे पास यह ठीकरा
हमारी इतिहास की क़िताब का एक मुक़म्मल पृष्ठ
काल के समुन्द्र में स्मृति की नौका की पतवार

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समय की अँगुली थामे
चल रही थी प्राचीन की उदासी
पथ्थरों पर अंकित था इतिहास
अशोक स्तभ का अनोखा स्थापत्य
संकेत कर रहा था सिद्धार्थ के अंत की ओर
विशाल आनंद स्तूप से झर रहा था
तथागत का अंतिम उपदेश
हमारे मन को गीला करता
कुशीनारा के मार्ग पर
आज भी जीवित हैं बुद्ध के पद-चिन्ह
दबा पड़ा हैं रेलीक-स्तूप के नीचे
उनके अवशेषों का आठवाँ हिस्सा
सोये इतिहास को जगाता
मिला देता है अतीत के उस गहन दुःख से
कुशीनारा के युग्म शाल-वृक्षो की छाया में
कैसा मार्मिक रहा होगा
महापरिनिर्वार्ण का वह दृश्य


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समय के कक्ष में
खुली अतीत की खिडकियाँ
संग्रहालय में टहल रहा था हमारे इर्द-गिर्द
पुरखों के होने का अहसास
शीशें की चहारदीवारी में सजी कारीगरी में
झलक रहा था सधे हाथों का श्रम
पथ्थरों पर अंकित था इतिहास
अमूल्य कलाकृतियाँ ,प्राचीन मूर्तियाँ
मिट्टी के भांड,ईंट.सिक्कें आभूषण
तरह -तरह के औज़ार.प्रस्तर-खंड
और उनके अवशेष
हमें लिए जा रहे थे
अपने साथ सुदूर की यात्रा पर
जहाँ की हवा में डूबा था इतिहास

शताब्दियों ने
कैसे बचा कर रखे होंगे हमारे लिए
पृथ्वी की कोख़ में पल रही
पूर्वजों की सृजन स्मृतियाँ
कालातीत कलाकृतियों के नमूने
आत्मा में गहरे उतर आया
उनका आदिम स्पर्श


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डूब चुका था सूरज
समय पर बचें हुए थे उसके निशान
शताब्दियों के इतिहास का सारांश
अपने भीतर समेटे
वैशाली से लौट रहे थे हम
शब्द पाने को छटपटा रहे थे
रक्त में धुले अहसास

पथ्थरों पर अभी भी अंकित था इतिहास